• 1990 के बाद का हिंदी समाज और अद्विज हिंदी लेखन

    Author(s):
    Pramod Ranjan (see profile)
    Date:
    2016
    Group(s):
    Literary theory, Sociology
    Subject(s):
    Literature and globalization, Dalits in literature, Hindi literature, Novelists, Hindi
    Item Type:
    Article
    Tag(s):
    Dalit Sahitya, Bahujan Sahitya
    Permanent URL:
    https://doi.org/10.17613/r8w1-wr46
    Abstract:
    1990 के बाद का दशक आर्थिक क्षेत्र में उदारीकरण के साथ ही दलित साहित्य के तेज उभार का भी दशक है,. अद्विज लेखकों के बीच सभी प्रकार के मत-मतांतरों से गुजरते हुए हम पाते हैं विभिन्न विचारधाराओं से आने वाले दलित और पिछड़े समुदायों से आने वाले लेखक ‘‘दलित-बहुजन मुक्त अर्थव्यवस्था का न ज्यादा अभिनंदन कर रहे हैं और ना ही उससे ज्यादा भयभीत हैं. उन्हें महसूस हो रहा है कि ग्लोबल अर्थव्यवस्था ने देशी बनिया ब्राह्मणवादी अर्थव्यवस्था को चुनौती दी है और वे उम्मीद कर रहे हैं कि अंततः वह उसे ध्वंस्त कर देगी. वह बाजार के बीच उपभोक्ता के रूप में खड़ा है, लेकिन उपभोक्तावाद की हाय-तौबा वह नहीं मचा रहा है. वह बाजार का अध्ययन कर रहा है. उसमें घुसने की तैयारी कर रहा है.‘‘ (39) लेकिन आदिवासी लेखकों के विचार इस मामले में अलग हैं. वे यह समझते हैं कि उदारीकरण उपजे कथित विकास से उनकी संस्कृति और परंपरा ही नहीं, अपने भौतिक हितों पर कुठाराघात होगा. अद्विज तबकों द्वारा लिखे गये रचानात्मक साहित्य में भी स्वाभिक तौर पर उनके उपरोक्त विचार प्रमुखता पाते हैं.
    Notes:
    यह आलेख स्त्रीकाल की वेबसाइट पर 19 अक्टूबर, 2016 को प्रकाशित हुआ था।
    Metadata:
    Published as:
    Online publication    
    Status:
    Published
    Last Updated:
    5 months ago
    License:
    Attribution-NonCommercial
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    Item Name: pdf 1990-ke-bad-ka-hindi-samaj-aur-adwij-lekhan_streekal_pramod-ranjan.pdf
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