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महिषासुर मिथक व परंपराएं
- Author(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2017
- Group(s):
- Cultural Studies, Festivals, Rituals, Public Spectacles, and Popular Culture, Philosophy of Religion, Religious Studies, Sociology
- Subject(s):
- Social justice, Caste, Indigenous peoples, Blasphemy, Culture conflict, Indian mythology, Durgā (Hindu deity), Caste-based discrimination, Mahiṣāsuramardinī (Hindu deity), Indigenous peoples--Social life and customs
- Item Type:
- Book
- Tag(s):
- Hinduism and Politics, Mythology, Asur Samudaay, Mahishashur, Dwij Sanskriti, Bahujan Sanskriti, Aarya
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/hz5d-e827
- Abstract:
- महिषासुर से संबंधित बहुजन समाज के मिथकों व परंपराओं , पौराणिक मिथकों और आधुनिक युग में गढे़ गए मिथकों के अर्थों को खोलने वाली इस पुस्तक का संपादक प्रमोद रंजन ने किया है। इस पुस्तक में पहली बार महिषासुर शहादत/स्मरण दिवस की विस्तृत सैद्धांतिकी भी प्रस्तुत की गई है तथा इस संबंध में उठने वालो सभी सवालों के उत्तर प्रस्तुत किये गये हैं। इस किताब के माध्यम से आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित ‘असुर’ जनजाति का नृतत्वशास्त्रीय अध्यययन तथा उनकी मौजूदा मार्मिक स्थितियां भी सामने आईं है। अनेक दुर्लभ चित्रों से सुसज्जित यह पुस्तक आदिवासी संस्कृति के अनन्य शोधकर्ता आचार्य मोतीरावण कंगाली व तिरूमाय चंद्रलेखा कंगाली को समर्पित है।
- Notes:
- क्या महिषासुर अनार्यों के पूर्वज थे, जो बाद में एक मिथकीय चरित्र बन कर बहुजन संस्कृति, जीवन-पद्धति और सभ्यता के प्रतीक पुरुष बन गये? क्या यह बहुत बाद की घटना है, जब मार्कंडेय पुराण और दुर्गासप्तशती जैसे ग्रंथ रचकर, एक कपोल-कल्पित देवी के हाथों महिषासुर की हत्या की कहानी गढ़ी गई? इस आन्दोलन की सैद्धांतिकी क्या है? किताब में लेखकों ने इस संदर्भ में उठने वाले विविध प्रश्नं का उत्तर दिया है तथा विलुप्ति के कगार पर खड़े असुर समुदाय का विस्तृत अध्ययन भी प्रस्तुत किया है।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Book Show details
- Publisher:
- The Marginalised Publication, Delhi/Wardha
- Pub. Date:
- 2017
- ISBN:
- 978-81-935616-6-9
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 5 months ago
- License:
- Attribution
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