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भय की महामारी
- Author(s):
- Pramod Ranjan (see profile)
- Date:
- 2022
- Group(s):
- Communication Studies, Public Humanities, Sociology
- Subject(s):
- Pandemics, COVID-19 (Disease) in mass media, COVID-19 (Disease)--Economic aspects, COVID-19 (Disease)--Social aspects, COVID-19 (Disease)--Government policy, COVID-19 (Disease)--Political aspects, COVID-19 (Disease)--Law and legislation, COVID-19 (Disease)--Psychological aspects, Electronic surveillance--Social aspects, High technology industries--Social aspects
- Item Type:
- Article
- Tag(s):
- SIGINT (Electronic surveillance), WHO, World Economic Forum, Social media, Facebook (Firm), Twitter (Firm), freedom of expression
- Permanent URL:
- https://doi.org/10.17613/nbn8-5x73
- Abstract:
- कोविड-19 नामक संक्रामक रोग ने मनुष्य द्वारा रचित संसार के साथ ऐसा कुछ किया है जो पहले कभी न देखा गया, न सुना गया, और न ही कल्पित किया गया। वैसे तो प्रत्येक महामारी मनुष्य के मन में कुछ बेचैनियाँ पैदा करती ही हैं, लेकिन इस महामारी की अपूर्वता ज़्यादा बड़ी हद तक इसके प्रति सरकारी तंत्रों की अनुक्रिया, विश्व-संगठनों के रवैये, दैत्याकार मीडिया-कंपनियों और ग़ैर-सरकारी ग्लोबल संगठनों की कारिस्तानियों का संचित नतीजा है। इतालवी दार्शनिक आगाम्बेन के शब्दों में कहें तो इन ताक़तों ने मिल कर ‘एक महामारी का आविष्कार’ करके उसके प्रति ‘अनुपातहीन भय’ को जन्म दिया है। ये कारिस्तानियाँ इसलिए कामयाब हो पाईं कि महामारी से पैदा हुए भय को व्यक्तिगत और सामाजिक नियंत्रण के एक औज़ार में बदल जाने दिया गया। चंद अपवादों को छोड़ कर समाज और राज्य के आलोचक बुद्धिजीवियों ने भय को उपकरण बनाने वाले नियंत्रक और शासक-स्वार्थों को आड़े हाथों लेने की तत्परता नहीं दिखायी। प्रमोद रंजन द्वारा की गयी कोरोना-काल की इस विस्तृत समीक्षा के केंद्र में उन कारणों का लेखा-जोखा लिया गया है जो पहली नज़र में कोविड-19 के गर्भ से जन्मे भय के ज़िम्मेदार लगते हैं। यह शोधपरक लेख प्रचलित ‘कांसपिरेसी थियरीज़’ से बचते हुए स्वास्थ्य संबंधी आपात-काल और किसी बीमारी को वैश्विक महामारी घोषित करने की नीतियों, इन निर्णयों से जुड़े काॅरपोरेट स्वार्थों, महामारी के दौरान लगातार नकारात्मक और डराने वाली ख़बरें फैलाने के प्रकरण, संक्रमण के समाचारों को बिना किसी तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य के प्रस्तुत करने, महामारी-माॅडलिंग के विशेषज्ञों द्वारा करोड़ों लोगों के संक्रमित होने और मर जाने की ख़ौफ़नाक भविष्यवाणियाँ करने, तसल्ली देने ख़बरों को रोकने, कड़े से कड़े लाॅकडाउन को ही एकमात्र युक्ति के रूप में स्थापित करने, मौतों की संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर बताने, बड़ी सोशल मीडिया कम्पनियों द्वारा अल्गोरिद्म और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से अपने मंचों पर ज़बरदस्त सेंसरशिप थोपने, सरकारों द्वारा कड़ी सज़ाओं और जुर्माने के प्रावधान करने, तरह-तरह से पारम्परिक मीडिया-नियंत्रण करने और आँकड़ों की कारीगरी द्वारा भय का माहौल बनाने के पीछे की राजनीति पर पड़ा पर्दा हटाता है।
- Notes:
- इस लेख का एक संक्षिप्त संस्करण गांधी मार्ग पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
- Metadata:
- xml
- Published as:
- Journal article Show details
- Publisher:
- Centre for the Study of Developing Societies, Delhi
- Pub. Date:
- June, 2020
- Journal:
- Pratiman
- Volume:
- 8
- Issue:
- 15
- Page Range:
- 10 - 68
- ISSN:
- 2320-8201
- Status:
- Published
- Last Updated:
- 1 year ago
- License:
- Attribution
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Item Name: भय-की-महामारी_प्रतिमान_pramod-ranjan_assam-univesity.pdf
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